सुबह के पहले ख्याल ने बीती रात के ख्वाब से कहा--
क्या रिश्ता है हमारा?
मैं तुमसे जन्मा हूँ ..मगर ये पैदाइश जायज़ है या नाजायज़ .. ये मालूम नहीं
लेकिन तुम पर
कोई हुकूमत नहीं किसी की
तुम्हारे सवाल तुम्हारे जवाब
तुम्हारे फ़लसफ़े तुम्हारी हकीक़तें .... सब तुम्हारे हैं
हक़ है तुम्हारा उन पर
तुम चाहो तो ग़मों से दूर
इक मुख्तलिफ जहाँ में जा सकते हो
बेनाम रिश्तों को भी
बा-अदब बेखौफ निभा सकते हो
तोड़ सकते हो ज़माने की बंदिशें
हर गिला हर शिकवा भुला सकते हो
मगर मैं..
मेरे हिस्से आते हैं... सच
जो परवाज़ तुम्हारा हक है ..कुफ्र है मेरे लिए
है जिसकी माफ़ी तुम्हें... पाप है मेरे लिए
थक चुका हूँ उकता चुका हूँ बस
इन कायदों इन रवायतों से
हटा दो ये सलाखें और उड़ने दो मुझे
या चिन दो एक दीवार और छोड़ दो मुझे
अपने आक़ा की सरपरस्ती में
हमेशा हमेशा के लिए ....
31/01/2007