अंतर्ध्वनि
यहाँ वो लिखा है ...जैसे मैंने जीवन को सुना है :)
Friday, September 21, 2012
तूलिका
जैसे रंग हैं
सब जगह
फैले हुए, बिखरे हुए
हाथ बढा कर पकड़ना चाहती हूँ, तो हथेली पे लग जाते हैं
और हथेली पे घुल कर , अपनी पहचान भूल जाते हैं
तुम्हारा हाथ थाम कर
मैं सारे रंग घोलना चाहती हूँ
शायद...
Newer Posts
Older Posts
Home
Subscribe to:
Posts (Atom)