युद्धस्थल है ये कहा करते हैं इसको महाभारत
अपने अपने कार्य में है प्राप्त सबको ही महारथ
कोई है अर्जुन यहाँ तो कोई योद्धा भीम है
कर्ण को भी कम न आँको, शक्ति उसकी असीम है
और मुझे भी जान लो --
मैं हूँ अभिमन्यु
नया हूँ इस समर की भव्यता में
नीति को हूँ तलाशता मैं
इस अनोखी सभ्यता में
महाभारत में चरण धर युद्ध लड़ने की है ठानी
व्यूह-भेदन को चला मैं
साहसी पर अल्प ज्ञानी
भेद कर इस चक्र को अब
आ खड़ा हूँ मध्य में मैं
चक्र रथ का हस्त में रख
चहुँ दिशा के बंध्य में मैं
अंत अपना जानता हूँ
फिर भी मैं ये मानता हूँ
भाग्य तो न बदल सकूंगा
किन्तु ऐसे न मारूंगा
कृष्ण जिस ने था दिया पितु को मेरे गीतोपदेश
फिर उन्हें आना ही होगा हरण करने को ये क्लेश
मृत्यु को मैं प्राप्त तो हो जाऊंगा पर इस तरह से
मेरी जैसी मृत्यु को अपने तो क्या दुश्मन भी तरसे
मातु की है कृपा अन्यथा स्वयं तो मैं समर्थ न था
अब दिखा दूंगा उन्हें , की ये जन्म मेरा व्यर्थ न था
अब लिखूंगा नव कथानक , बदल अपनी परिणीती
इन पुरा योद्धाओं को भी सिखा दूंगा युद्ध नीति
भयाक्रांत समाज को अब इक नयी ताकत मैं दूंगा
सीख लेंगी पीढियां नव..
महाभारत नव रचूंगा
May 5, 2005